Rubaai Poetry (page 6)
सर-ता-ब-क़दम रुख़-ए-निगारीं है कि तन
फ़िराक़ गोरखपुरी
सरमाया-ए-इल्म-ओ-फ़ज़्ल खोया मैं ने
अमजद हैदराबादी
सरमाया-ए-ए'तिबार दे दें तुम को
जगत मोहन लाल रवाँ
सरमाए की अज़्मत का निशाँ देख लिया
बाक़र मेहदी
सर खींच न शमशीर-ए-कशीदा की तरह
मीर अनीस
सर बस्ता हयात ज़ात गुंजान मिरी
अकबर हैदराबादी
साक़ी से जो हम ने मय का इक जाम लिया
नज़ीर अकबराबादी
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
इस्माइल मेरठी
साक़ी ने हमें साग़र-ए-जम बख़्शे हैं
सादिक़ैन
साक़ी के करम से फ़ैज़ ये जारी है
शाद अज़ीमाबादी
साँसों में लिए कर्ब-ओ-बला जीता हूँ
अख़्तर अंसारी
सानी नहीं तेरा न कोई तेरी मिसाल
फ़िराक़ गोरखपुरी
समझा हुआ जब कोई इशारा न मिले
बाक़र मेहदी
सख़्ती का जवाब नर्मी है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
सज्जादा है मेरा फ़लक-ए-नीली-फ़ाम
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
सैलाब-ए-बला रक़्स न फ़रमाए कहीं
परवेज़ शाहिदी
सहराओं की बात ज़ारों में कही
परवेज़ शाहिदी
सहरा में ज़माँ मकाँ के खो जाती हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
सहरा में भटकता हुआ इक दरिया हूँ
हुरमतुल इकराम
सहमे सहमे दिलों में हिम्मत जागी
परवेज़ शाहिदी
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
जोश मलीहाबादी
साहिल पे अगर मिरा सफ़ीना आ जाए
नज़ीर बनारसी
साग़र कफ़-ए-दस्त में सुराही ब-बग़ल
फ़िराक़ गोरखपुरी
सड़कों पे तिरी फिरता था मारा मारा
बाक़र मेहदी
सदियों मैं हवस-ख़ाना-ए-हस्ती में रहा
कालीदास गुप्ता रज़ा
सद-हैफ़ कि मय-नोश हुए हम कैसे
ग़ुलाम मौला क़लक़
सच्चाई पे इक निगाह कर लूँ या-रब
सादिक़ैन
सच है कि जहाँ में सैर क्या क्या देखी
बयान मेरठी
साबित है तन में बादशाही दिल की
अहमद हुसैन माइल
सब सब्र-ओ-शकेब-ओ-होश खो देता हूँ
सूफ़ी तबस्सुम