Rubaai Poetry (page 5)
तदबीर करें तो इस में नाकामी हो
अकबर इलाहाबादी
ता हद्द-ए-नज़र दमक रहे हैं ज़र्रे
नरेश कुमार शाद
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
सूरज पे जो थूकोगे तो क्या पाओगे
अलक़मा शिबली
सुन युग-ओ-युग की कहानी न उठा
फ़िराक़ गोरखपुरी
सुन सकते हो नग़्मा आज भी तुम मेरा
परवेज़ शाहिदी
सुकूत-ए-दरवेश-ए-जाहिल
अल्ताफ़ हुसैन हाली
सुग़रा का मरज़ कम न हुआ दरमाँ से
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
सूफ़ी हूँ न वाइज़ हूँ नहीं हूँ मुल्ला
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
सुब्ह-ए-अज़ल ओ शाम-ए-अबद कुछ भी नहीं
यगाना चंगेज़ी
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
मीर अनीस
सोते में कोई आह भरी तो होगी
अख़्तर अंसारी
सोते जादू जगाने वाले दिन हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
सीने में उछल रही है हसरत मेरी
सूफ़ी तबस्सुम
शो'लों की तरह हैं कभी शबनम की तरह
ओबैदुर् रहमान
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
नरेश कुमार शाद
शो'ले हैं कहीं तेज़ कहीं हैं मद्धम
अकबर हैदराबादी
शैतान करता है कब किसी को गुमराह
इस्माइल मेरठी
शहरों में फिरे न सू-ए-सहरा निकले
शाद अज़ीमाबादी
शहबाज़-ए-नबी चर्ख़ पे मंडलाया था
सादिक़ैन
शह कहते थे अफ़्सोस न कहना माने
ग़ुलाम मौला क़लक़
शागिर्द किसी का हूँ न उस्ताद हूँ मैं
सादिक़ैन
शाएर शाएर है हो जो अहल-ए-ईमाँ
नावक हमज़ापुरी
शादाँ हूँ कि ग़मनाक पिए जाता हूँ
सूफ़ी तबस्सुम
शब्बीर का ग़म ये जिस के दिल पर होगा
मीर अनीस
शब मेरी थी शाम मेरी दिन था मेरा
सादिक़ैन
सय्यारों में साहिल है वो अज़्मत तुझ को
परवेज़ शाहिदी
'सौदा' शेर में है बड़ाई तुझ को
मोहम्मद रफ़ी सौदा
सौ तरह के सदमों से गुज़रना कैसा
बाक़र मेहदी
सौ तरह का मेरे लिए सामान क्या
शाद अज़ीमाबादी