बयान मेरठी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का बयान मेरठी (page 1)
नाम | बयान मेरठी |
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अंग्रेज़ी नाम | Bayan Meeruti |
सच है कि जहाँ में सैर क्या क्या देखी
पीरी की सपेदी है कि मरता हूँ मैं
कब कोई फ़ुज़ूल हाथ मिलता है भला
जो मकतब-ए-ईजाद में दाख़िल होगा
इफ़्लास में क्यूँ टेक्स लगा रक्खा है
हाँ जेहल तुम्हीं से रंग लाया फिर क्यूँ
गरमी इमसाल किस क़यामत की पड़ी
बेदार नहीं कोई जहाँ ख़्वाब में है
असरार जहाँ लतीफ़ा-ए-ग़ैबी हैं
आवारा-ए-हिर्स दर-ब-दर फिरता है
ये तासीर मोहब्बत है कि टपका
याद में ख़्वाब में तसव्वुर में
वो पोशीदा रखते हैं अपना तअ'ल्लुक़
वो हटे आँख के आगे से तो बस सूरत-ए-अक्स
वही उठाए मुझे जो बने मिरा मज़दूर
शैख़ के माथे पे मिट्टी बरहमन के बर में बुत
पार दरिया-ए-शहादत से उतर जाते हैं सर
नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम
नहीं ये आदमी का काम वाइ'ज़
कभी हँसाया कभी रुलाया कभी रुलाया कभी हँसाया
हज़ारों दिल मसल कर पैर से झुँझला के यूँ बोले
हवा-ए-वहशत दिल ले उड़ी कहाँ से कहाँ
गौहर-ए-मक़्सद मिले गर चर्ख़-ए-मीनाई न हो
दिल आया है क़यामत है मिरा दिल
ऐ तन-परस्त जामा-ए-सूरत कसीफ़ है
अदाएँ ता-अबद बिखरी पड़ी हैं
ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर
यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था
वो दरिया-बार अश्कों की झड़ी है
सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ