ग़ालिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ालिब (page 11)
नाम | ग़ालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
दम लिया था न क़यामत ने हनूज़
दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ
चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़-रौ के साथ
चाहते हैं ख़ूब-रूयों को 'असद'
चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल
बोसा कैसा यही ग़नीमत है
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये
बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर
बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ
बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें
बंदगी में भी वो आज़ादा ओ ख़ुद-बीं हैं कि हम
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब'
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
बैठा है जो कि साया-ए-दीवार-ए-यार में
बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की