Qita Poetry (page 12)

नक़्श तीखे बाँकी चितवन दाँत मोती की क़तार

गणेश बिहारी तर्ज़

ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में

महेश चंद्र नक़्श

ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी

जाँ निसार अख़्तर

नामा-ए-दर्द को मिरे ले कर

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

नाले कहीं बुलबुल के सुनाई नहीं देते

आसिम पीरज़ादा

नाख़ुदा किस लिए परेशाँ है

अब्दुल हमीद अदम

नाकाम मोहब्बत का हर इक दुख सहना

अतहर शाह ख़ान जैदी

नई क़ुर्बत में खो रही हो तुम

आरिफ़ इशतियाक़

नहले पे दहला

सरफ़राज़ शाहिद

नहीं पस्तियों में बुलंदियों से मैं अपने आप ही आ गया

अब्दुल्लाह बाबर

नहीं मक़ाम की ख़ूगर तबीअत-ए-आज़ाद

अल्लामा इक़बाल

नदी नाले समुंदर और दरिया पार करते हैं

मोहम्मद कलीम ज़िया

न उन का ज़ेहन साफ़ है न मेरा क़ल्ब साफ़ है

असरार-उल-हक़ मजाज़

न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं

कश्मीरी लाल ज़ाकिर

न समझा गया अब्र क्या देख कर

मीर तक़ी मीर

न पूछ जब से तिरा इंतिज़ार कितना है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न मुँह छुपा के जिए हम न सर झुका के जिए

साहिर लुधियानवी

न मोमिन है न मोमिन की अमीरी

अल्लामा इक़बाल

न लिक्खो वस्ल की राहत सलीब लिख डालो

साग़र ख़य्यामी

न ख़ुदा है न नाख़ुदा साथी

अब्दुल हमीद अदम

न जानूँ 'मीर' क्यूँ ऐसा है चिपका

मीर तक़ी मीर

न जाने कट गया किस बे-ख़ुदी के आलम में

सूफ़ी तबस्सुम

न दीद है न सुख़न अब न हर्फ़ है न पयाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न अहल-ए-मय-कदा ने मुस्कुरा कर बात की हम से

प्रेम वारबर्टनी

न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी

मीर तक़ी मीर

न आज लुत्फ़ कर इतना कि कल गुज़र न सके

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुत्तहिद हो के उठे ज़ुल्म के क़दमों से अवाम

अली सरदार जाफ़री

मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ

अख़्तर अंसारी

मुतमइन कोई नहीं है उस से

क़तील शिफ़ाई

मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा

महेश चंद्र नक़्श

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