शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम (page 4)
नाम | शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम |
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अंग्रेज़ी नाम | Shaikh Zahuruddin Hatim |
जन्म की तारीख | 1699 |
मौत की तिथि | 1783 |
जन्म स्थान | Delhi |
मस्जिद में सर पटकता है तो जिस के वास्ते
मशरब में तो दुरुस्त ख़राबातियों के है
मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू
मज्लिस में रात गिर्या-ए-मस्ताँ था तुझ बग़ैर
मैं उस की चश्म से ऐसा गिरा हूँ
मैं पीर हो गया हूँ और अब तक जवाँ है दर्द
मैं कुफ़्र ओ दीं से गुज़र कर हुआ हूँ ला-मज़हब
मैं जितना ढूँढता हूँ उस को उतना ही नहीं पाता
मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
क्यूँकर इन काली बलाओं से बचेगा आशिक़
क्यूँ मोज़ाहिम है मेरे आने से
क्या मदरसे में दहर के उल्टी हवा बही
क्या बड़ा ऐब है इस जामा-ए-उर्यानी में
कोई है सुर्ख़-पोश कोई ज़र्द-पोश है
कोई बतलाता नहीं आलम में उस के घर की राह
कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
किया था दिन का वादा रात को आया तो क्या शिकवा
किसू मशरब में और मज़हब में
किस तरह से गुज़ार करूँ राह-ए-इश्क़ में
किस तरह पहुँचूँ मैं अपने यार किन पंजाब में
किस से कहूँ मैं हाल-ए-दिल अपना कि ता सुने
ख़ुम-ख़ाना मय-कशों ने किया इस क़दर तही
खुल गई जिस की आँख मिस्ल-ए-हबाब
ख़ुदा को जिस से पहुँचें हैं वो और ही राह है ज़ाहिद
ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो
ख़ूबान-ए-जहाँ हों जिस से तस्ख़ीर
खेल सब छोड़ खेल अपना खेल
ख़ाकसारों का दिल ख़ज़ीना है
ख़ाक कर देवे जला कर पहले फिर टिसवे बहाए
केसर में इस तरह से आलूदा है सरापा