शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम (page 7)
नाम | शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम |
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अंग्रेज़ी नाम | Shaikh Zahuruddin Hatim |
जन्म की तारीख | 1699 |
मौत की तिथि | 1783 |
जन्म स्थान | Delhi |
गुलशन-ए-दहर में सौ रंग हैं 'हातिम' उस के
घर-ब-घर है वो मस्त-ए-इश्वा-ओ-नाज़
गली में उस की न देखा कभू किसी को मगर
गदा को गर क़नाअत हो तो फाटा चीथड़ा बस है
फ़िल-हक़ीक़त कोई नहीं मरता
फ़ानूस तन में देख ले रौशन हैं जूँ चराग़
एक दिन पूछा न 'हातिम' को कभू उस ने कि दोस्त
एक बोसा माँगता है तुम से 'हातिम' सा गदा
दोस्तों से दुश्मनी और दुश्मनों से दोस्ती
दिल-ए-उश्शाक़ परिंदों की तरह उड़ते हैं
दिल-ए-सद-चाक मिरा राह यहाँ कब पाए
दिल-ए-नाज़ुक मिरा हाथों में सँभाले रखियो
दिल उस की तार-ए-ज़ुल्फ़ के बल में उलझ गया
दिल था बग़ल में मुद्दई ख़ूब हुआ जो ग़म हुआ
दिल को मारा चश्म ने अबरू की तलवारों से आज
दिल की लहरों का तूल-ओ-अर्ज़ न पूछ
दिल देखते ही उस को गिरफ़्तार हो गया
देखूँ हूँ तुझ को दूर से बैठा हज़ार कोस
देख कर हर उज़्व उन का दिल हो पानी बह चला
दे के दिल उस के हाथ अपने हाथ
दे के दिल हाथ तिरे अपने हाथ
दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का
दर-ओ-दीवार-ए-चमन आज हैं ख़ूँ से लबरेज़
दर्द तू मेरे पास से मरते तलक न जाइयो
दहन है तंग शकर और शकर है तिरा है कलाम
छुपाता क्या है मुँह कब तक छुपेगा
छल-बल उस की निगाह का मत पूछ
चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चमन ख़राब किया, हो ख़िज़ाँ का ख़ाना-ख़राब
चला जाता था 'हातिम' आज कुछ वाही-तबाही सा