Rubaai Poetry (page 26)
देखा तो कहीं नज़र न आया हरगिज़
इस्माइल मेरठी
देख कर तेरी आलम-आराई
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
दे जिस को शराब-ए-नाब पानी का मज़ा
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
दौलत ने मुआ'विनत जो की तो क्या की
जोर्ज पेश शोर
दौलत नहीं जब तक ये ज़ुबूँ रहते हैं
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
दरयाफ़्त करे वज़्न हवा का मुझ से
क़तील शिफ़ाई
दरवाज़े पे तेरे ही मरूँगा या-रब
ग़ुलाम मौला क़लक़
दरवाज़े पे तेरे इक जहाँ झुकता है
तिलोकचंद महरूम
दरगाह-ए-अलम-दार से बहबूदी है
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
दर्द अपना कुछ और है दवा है कुछ और
यगाना चंगेज़ी
दर-अस्ल कहाँ है इख़्तिलाफ़-ए-अहवाल
इस्माइल मेरठी
दामन से गुल-ए-ताज़ा महकते निकले
ग़ुलाम मौला क़लक़
दामाद-ए-रसूल की शहादत है आज
मीर अनीस
छुट-भय्यों की शाइ'री का ये ज़ोर ये शोर
यगाना चंगेज़ी
छाया है बगूलों का फ़ुसूँ मंज़िल तक
हुरमतुल इकराम
चेहरे की तब-ओ-ताब में कौंद लपके
नरेश कुमार शाद
चौथी का जोड़ा
फ़े सीन एजाज़
चौपाए की तरह तू किताबों से न लद
इस्माइल मेरठी
चलने का तो हो गया बहाना तुम को
मीर मेहदी मजरूह
चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
इस्माइल मेरठी
चढ़ती हुई नद्दी है कि लहराती है
फ़िराक़ गोरखपुरी
चारा नहीं कोई जलते रहने के सिवा
यगाना चंगेज़ी
चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं
शाद अज़ीमाबादी
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
मीर तक़ी मीर
बुत लाखों मोहब्बत में तराशे ऐसे
अख़्तर अंसारी
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
इस्माइल मेरठी
बुलबुल की ज़बाँ तक जला डाली है
परवेज़ शाहिदी
बुलबुल की हज़ार आश्नाई देखी
मीर हसन
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
नरेश कुमार शाद