Rubaai Poetry (page 27)
बिस्त-ओ-यकुम-ए-माह-ए-मोहर्रम है आज
मीर अनीस
भूलता जाता है यूरोप आसमानी बाप को
अकबर इलाहाबादी
बेताबी में हर तरह से बर्बाद रहा
बाक़र मेहदी
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
जोश मलीहाबादी
बेकस की कोई किस लिए इमदाद करे
अमीर चंद बहार
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
इस्माइल मेरठी
बे-कैफ़ हैं दिन-रात कहूँ तो किस से
अमीर चंद बहार
बे-जा नहीं मद्ह-ए-शह में ग़र्रा मेरा
मीर अनीस
बे-हिस के तग़ाफ़ुल का तो शिकवा बे-सूद
साहिर होशियारपुरी
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
मीर अनीस
बे-दीनों को मुर्तज़ा ने ईमाँ बख़्शा
मीर अनीस
बेदारी-ए-एहसास है उलझन मेरी
नावक हमज़ापुरी
बेदारी का इक दौर नया आता है
बाक़र मेहदी
बे-दर्द हो क्या जानो मुसीबत के मज़े
यगाना चंगेज़ी
बेदार नहीं कोई जहाँ ख़्वाब में है
बयान मेरठी
बे-बर्ग-ओ-नवा की शेर-ख़्वानी मा'लूम
ग़ुलाम मौला क़लक़
बेबादा भी ग़म से दूर हो जाता हूँ
नज़ीर बनारसी
बे फ़ाएदा रखता नहीं सर हाथों पर
मुनीर शिकोहाबादी
बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ
शाद अज़ीमाबादी
बरसात की छा गईं घटाएँ साक़ी
सूफ़ी तबस्सुम
बरसात है दिल डस रहा है पानी
जोश मलीहाबादी
बरहम है जहाँ अजब तलातुम है आज
मीर अनीस
बर्बाद सुकून-दर-ओ-दीवार न हो
अकबर हैदराबादी
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
जोश मलीहाबादी
बाक़ी न रही हाथ में जब क़ुव्वत-ओ-ज़ोर
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
बानो ने कहा क़तरा नहीं शीर का है
ग़ुलाम मौला क़लक़
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
जोश मलीहाबादी
बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
इस्माइल मेरठी
बन-बासियों में जलव-ए-गुलशन ले कर
फ़िराक़ गोरखपुरी