Rubaai Poetry (page 9)
पैरी में हवास-ओ-होश सब खोते हैं
रशीद लखनवी
पैदल न मुझे रोज़-ए-शुमार उन से दे
अहमद हुसैन माइल
निखरे बदन का मुस्कुराना है है
फ़िराक़ गोरखपुरी
'नाज़िम' उसे ख़त में कहते हो क्या लिखिए
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
नअत
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नासेह न सुना सुख़न मुझे जिस-तिस के
नज़ीर अकबराबादी
नासेह की शिकायत वही ज़ख़्म-ए-जाँ है
ग़ुलाम मौला क़लक़
नक़्शा लैल-ओ-नहार का खींचा है
अहमद हुसैन माइल
नक़्क़ाश से मुमकिन है कि हो नक़्श ख़िलाफ़
इस्माइल मेरठी
नामी हुए बे निशान होने के लिए
रशीद लखनवी
नालों से कभी नाम न लूँगा ऐ दोस्त
परवेज़ शाहिदी
नाला तेरा नाज़ से बाला है
जगत मोहन लाल रवाँ
नाहक़ था 'क़लक़' मुझे ग़ुरूर-ए-इस्लाम
ग़ुलाम मौला क़लक़
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
जोश मलीहाबादी
नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
नफ़रत की हवा बन में चलाई किस ने
अकबर हैदराबादी
नादीदा ख़लाओं से गुज़र आई है
हुरमतुल इकराम
नभ-मंडल गूँजता है तेरे जस से
फ़िराक़ गोरखपुरी
न मय के न जाम के लिए मरते हैं
मीर हसन
मुश्किल कोई मुश्किल नहीं जीने के सिवा
यगाना चंगेज़ी
मुश्किल ही से फिर दिल से निकल पाती है
दर्द सईदी
मुँह गेसू-ए-पुर-ख़म से न मोड़ूँ कब तक
ग़ुलाम मौला क़लक़
मुमकिन नहीं अंदेशा-ए-फ़र्दा कम हो
यगाना चंगेज़ी
मुखड़े को जो उस के हम ने जा कर देखा
नज़ीर अकबराबादी
मुखड़ा देखें तो माह-पारे छुप जाएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
मुख़ालिफ़त का जवाब ख़ामोशी से बेहतर नहीं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
मुझ से जो न मिलते वो कोई रात न थी
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
मुझ को तो शराब से मस्ती है और
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
मुफ़्लिस को मज़ा ज़ीस्त का चखने न दिया
यगाना चंगेज़ी
मोमिन ये असर सियाह-मस्ती का न हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन