Rubaai Poetry (page 10)
मिट्टी हैं होंगे ज़मीन का पैवंद
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
मिलता नहीं मुझ को नक़्श अपना मुझ में
अकबर हैदराबादी
मिलना किस काम का अगर दिल न मिले
जगत मोहन लाल रवाँ
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
जोश मलीहाबादी
मेहराब-ओ-मुसल्ला और ज़ाहिद भी वही
ग़ुलाम मौला क़लक़
मेहराब की परछाइयाँ तड़पाती हैं
सादिक़ैन
मज़मूँ मेरे दिल में बे-तलब आते हैं
शाद अज़ीमाबादी
मज़मून अगर राह में हाथ आता है
मुनीर शिकोहाबादी
माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
अख़्तर अंसारी
मौजूदा तरक़्क़ी का अंजाम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
मौजों से लिपट के पार उतरने वाले
यगाना चंगेज़ी
मत कहियो ज़बाँ है ये मुसलामानों की
अमीर चंद बहार
मा'सूमा
फ़े सीन एजाज़
मस्ती में नज़र चमक रही है साक़ी
परवेज़ शाहिदी
मस्जिद में न जा वाँ नहीं होने का निबाह
ग़ुलाम मौला क़लक़
मस्जिद को दिया छोड़ रिया की ख़ातिर
ग़ुलाम मौला क़लक़
मश्शातगी-ए-ज़ुल्फ़-ए-सुख़न का एहसास
नावक हमज़ापुरी
मशहूर-ए-जहाँ है दास्तान-ए-शीरीं
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
मरमर के पए रंज-ओ-बला जीते हैं
ग़ुलाम मौला क़लक़
मरहूम तमन्नाओं को क्या याद करें
बाक़र मेहदी
मर्ग़ूब हो गर तुम को उमूमी शाबाश
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
मरदूद-ए-ख़लाइक़ हूँ गुनहगार हूँ मैं
साहिर देहल्वी
मरज़-ए-पीरी ला-इलाज है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
मर मर के लहद में मैं ने जा पाई है
अमजद हैदराबादी
मक़्सूद है क़ैद-ए-जुस्तुजू से बाहर
इस्माइल मेरठी
मंज़िल का पता है न ठिकाना मा'लूम
यगाना चंगेज़ी
मंजधार में हूँ पास किनारा भी नहीं
अकबर हैदराबादी
माना वाइ'ज़ बड़ा ही अल्लामा है
अहमद हुसैन माइल
माना कि हर इक तरह के हाएल ग़म हैं
बाक़र मेहदी
माँ और बहन भी और चहेती बेटी
फ़िराक़ गोरखपुरी