Rubaai Poetry (page 12)

ले डूबेगी ख़ामोशी कोई दम हँस-बोल

कालीदास गुप्ता रज़ा

लज़्ज़त में ख़ुदी की खो गया है ज़ाहिद

परवेज़ शाहिदी

लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़

सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़

लाज़िम मलज़ूम हो गए ज़ात-ओ-सिफ़ात

साहिर देहल्वी

लाज़िम है कि फ़िक्र-ए-रुख़-ए-दिलबर छोड़ूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये

मीर अनीस

लम्हों का निशाना कभी होता ही नहीं

क़तील शिफ़ाई

ललकार

शैदा अम्बालवी

लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़

इस्माइल मेरठी

लचका लचका बदन मुजस्सम है नसीम

फ़िराक़ गोरखपुरी

क्यूँ-कर न रहे ग़म-ए-निहानी तेरा

शाद अज़ीमाबादी

क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे

मीर अनीस

क्यूँ ज़ेहन में ये खौलता लावा होता

हुरमतुल इकराम

क्यूँ ज़र्द है रंग किस लिए आँसू लाल

मोमिन ख़ाँ मोमिन

क्यूँ उन को सताने में मज़ा आता है

अमीर चंद बहार

क्यूँ क़हर-ए-ख़ुदावंद-ए-मजाज़ी से डरो

बाक़र मेहदी

क्यूँ मतलब-ए-हस्ती-ओ-अदम खुल जाता

यगाना चंगेज़ी

क्यूँ कुंज-ए-लहद के मुत्तसिल जाऊँ गा

रशीद लखनवी

क्यूँ ग़म्ज़ा-ए-जाँ-सिताँ को ख़ंजर न कहें

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

क्यूँ बात छुपाऊँ रिंद-ए-मय-नोश हूँ मैं

शाद अज़ीमाबादी

क्यूँ अंजुमन-ए-ग़ैर में फ़रियाद करें

बाक़र मेहदी

क्या ज़िक्र-ए-वफ़ा जफ़ा किसी से न बनी

ग़ुलाम मौला क़लक़

क्या वस्फ़ लिखूँ ज़ुल्फ़-ए-सियह की लट का

जोर्ज पेश शोर

क्या तुम ने मिरा हाल-ए-ज़बूँ देखा है

अमीर चंद बहार

क्या तेरे ख़याल ने भी छेड़ा है सितार

फ़िराक़ गोरखपुरी

क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के

जोश मलीहाबादी

क्या रंग-ए-ज़मीन-ओ-आसमाँ है साक़ी

परवेज़ शाहिदी

क्या क़ामत-ए-अहमद ने ज़िया पाई है

मिर्ज़ा सलामत अली दबीर

क्या मुफ़्त ज़ाहिदों ने इल्ज़ाम लिया

शाद अज़ीमाबादी

क्या लेने सू-ए-जाह-ओ-हशम जाएँगे

ग़ुलाम मौला क़लक़

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