Rubaai Poetry (page 13)
क्या ख़ाक करम है जो मुझे तू बख़्शे
अख़्तर अंसारी
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
इस्माइल मेरठी
क्या जानिए उल्फ़त का है किस से आग़ाज़
ग़ुलाम मौला क़लक़
क्या हाल अब उस से अपने दिल का कहिए
नज़ीर अकबराबादी
क्या दस्त-ए-मिज़ा को हाथ आई तस्बीह
मीर अनीस
क्या बात है कारसाज़ तेरी मैं कौन
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
क्या अर्ज़-ओ-समा में नज़र आता है ख़लल
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
कुन-फ़-यकून से पहले का आलम
जमाल ओवैसी
कुछ वक़्त से एक बीज शजर होता है
अमजद हैदराबादी
कुछ तेरा समर न ऐ जवानी पाया
जोर्ज पेश शोर
कुछ मुल्क-ए-अदम में रंज का नाम न था
मीर अनीस
कुछ लुत्फ़-ए-सुख़न वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं
अहमद हुसैन माइल
कुछ काम नहीं गबरू मुसलमाँ से हमें
जोर्ज पेश शोर
कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
अख़्तर अंसारी
कुछ दिल से झुके हुए कहा करते हैं
रशीद लखनवी
कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
अख़्तर अंसारी
कुछ अहल-ए-ज़मीं हाल नया कहते हैं
रशीद लखनवी
कूचे में तुम्हारे हम जो टुक आते हैं
नज़ीर अकबराबादी
कोताह न उम्र-ए-मय-परस्ती कीजे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
कोमल पद-गामिनी की आहट तो सुनो
फ़िराक़ गोरखपुरी
कोई तुझ को पुकारता जाता है
यगाना चंगेज़ी
कोई देखे तो मेरी नय-नवाज़ी
अल्लामा इक़बाल
कितनों को जिगर का ज़ख़्म सीते देखा
फ़ानी बदायुनी
किसी का राग़-ए-मतालिब किसी का बाग़-ए-मुराद
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
किस वास्ते साहिल पे खड़े हो शश्दर
अलक़मा शिबली
किस वास्ते दी थीं हमें या-रब आँखें
ग़ुलाम मौला क़लक़
किस तौर से किस तरह से क्यूँ कर पाया
इस्माइल मेरठी
किस तरह से गिर्या को न हो तुग़्यानी
ग़ुलाम मौला क़लक़
किस तरह से आई है जमाही तौबा
नज़ीर बनारसी
किस तरह करे न एक आलिम अफ़्सोस
मीर अनीस