Rubaais of Ghulam Maula Qalaq (page 2)

Rubaais of Ghulam Maula Qalaq (page 2)
नामग़ुलाम मौला क़लक़
अंग्रेज़ी नामGhulam Maula Qalaq

कल तक थी ख़ुल्द ख़ाना-ज़ाद-ए-देहली

कहता हूँ ख़ुदा-लगती अक़ीदे के ख़िलाफ़

जो जा के न आए फिर जवानी है ये शय

जाहिल की है मीरास 'क़लक़' तख़्त-ओ-ताज

जब बाप मुआ तो फिर है बेटा क्या शय

जाँ जाए पर उम्मीद न जाएगी कभी

इस वक़्त ज़माने में बहम ऐसे हैं

इस बज़्म से मैदान में जाना होगा

इस अहद में एहतिसाब-ए-ईमानी क्या

हम कौन हैं एहतिमाम करने वाले

हर ज़ख़्म-ए-जिगर खाया है दिल पर तन कर

हर तरह से ज़ाएअ' है यहाँ हर औक़ात

हर रोज़ ख़ुशी है शब-ए-ग़म से पामाल

हर फ़स्ल में होते हैं जवाँ सारे शजर

है मेहर-ए-करम गुनाह-गारी मेरी

है दोस्ती-ए-आल-ए-अबा रोने से

है बस कि जवानी में बुढ़ापे का ग़म

ग़ैरों को शब-ए-वस्ल बुलाने से ग़रज़

गर्दन को झुका देता है अदना एहसान

गाहे तो करम हम पे भी फ़रमाएँ आप

फ़ानी के है नज़दीक बक़ा को भी फ़ना

दुनिया में 'क़लक़' क्या है सरासर है ख़ाक

दुनिया का तमाम कारख़ाना है अबस

दुनिया का अजब रंग से देखा अंगेज़

दुनिया है अजब बू-क़लमूँ ज़िद-आमोज़

दीं ही बेहोश है न दुनिया बेहोश

दिल से मुझे आने की है आन की आहट

दिल जोश-ए-मआसी से न क्यूँ ख़ूँ हो जाए

दिल देर-गुज़ारी से है आवंद-ए-नमक

दरवाज़े पे तेरे ही मरूँगा या-रब

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