Rubaai Poetry (page 21)

हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी

जोश मलीहाबादी

हर हर्फ़ में मह-पारों के क़द बनते हैं

सादिक़ैन

हर हाल में आबरू-ए-फ़न लाज़िम है

शाद अज़ीमाबादी

हर ग़ुंचे से शाख़-ए-गुल है क्यूँ नज़्र-ब-कफ़

मीर अनीस

हर फ़स्ल में होते हैं जवाँ सारे शजर

ग़ुलाम मौला क़लक़

हर एक को नौकरी नहीं मिलने की

अकबर इलाहाबादी

हर एक हक़ीक़त का फ़साना होगा

बाक़र मेहदी

हर दर्द को कर लिया गवारा मैं ने

सूफ़ी तबस्सुम

हर चश्म से चश्मे की रवानी हो जाए

मिर्ज़ा सलामत अली दबीर

हर चंद लुत्फ़-ओ-मेहरबानी पेश आए

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

हर चंद गुनाहों से हूँ मैं नामा सियाह

मुनीर शिकोहाबादी

हर बात यहाँ राज़ बनी जाती है

बाक़र मेहदी

हर बात को पहले तौलता है शाएर

नावक हमज़ापुरी

हर आग को नज़्र-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक करूँ

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

हक़्क़ा कि वो जादा-ए-वफ़ा से भी फिरा

शाद अज़ीमाबादी

हक़्क़ा कि बुलंद है मक़ाम-ए-अकबर

इस्माइल मेरठी

हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल

इस्माइल मेरठी

हंगामा तिरा ही गर्म हर इक सू है

तिलोकचंद महरूम

हाँ मफ़्ती-ए-शहर ने फ़तवे भेजे

सादिक़ैन

हाँ जुमला फ़नून-ए-ज़िंदगानी सीखे

सादिक़ैन

हाँ जेहल तुम्हीं से रंग लाया फिर क्यूँ

बयान मेरठी

हाँ ऐ दिल-ए-ईज़ा-तलब आराम न ले

यगाना चंगेज़ी

हम-शान-ए-नजफ़ न अर्श-ए-अनवर ठहरा

मिर्ज़ा सलामत अली दबीर

हमराह अदम से इज़्तिराब आया है

अहमद हुसैन माइल

हमारा अक़ीदा

शैदा अम्बालवी

हैरान है क्यूँ राज़-ए-बक़ा मुझ से पूछ

यगाना चंगेज़ी

हैं क़ाफ़ से ख़त्ताती में पैदा औसाफ़

सादिक़ैन

हैं ख़्वाब भी और ख़्वाब की ताबीरें भी

अलक़मा शिबली

हैं एक हकीम जी ब-शक्ल-ए-ताऊन

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

है उन की यही ख़ुशी कि हम ग़म में रहें

अमजद हैदराबादी

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