Rubaai Poetry (page 22)
है उन की नज़ाकतों का पाना मुश्किल क्या कीजे बयाँ
मीर मेहदी मजरूह
है सू-ए-फ़लक नज़र तमाशा क्या है
अहमद हुसैन माइल
है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
इस्माइल मेरठी
है शर्म-ए-गुनह से जाँ कैसी बे-ताब
मोमिन ख़ाँ मोमिन
है साथ इबादत के अबा भी तेरी
फ़रहत कानपुरी
है रज़्म सरापा तो ज़बाँ और ही है
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
है नाज़िश-ए-काएनात ये पैकर-ए-ख़ाक
तिलोकचंद महरूम
है मेहर-ए-करम गुनाह-गारी मेरी
ग़ुलाम मौला क़लक़
है जिस की सरिश्त में सफ़ाहत का मैल
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
इस्माइल मेरठी
है फ़ितरत-ए-ज़न रमीदा आहू की तरह
सूफ़ी तबस्सुम
है दोस्ती-ए-आल-ए-अबा रोने से
ग़ुलाम मौला क़लक़
है चाह ने उस की जब से की जा दिल में
नज़ीर अकबराबादी
है बस कि जवानी में बुढ़ापे का ग़म
ग़ुलाम मौला क़लक़
है बार-ए-ख़ुदा कि आलम-आरा तू है
इस्माइल मेरठी
है अर्श भी यक फ़र्श क़दम का तेरे
अहमद हुसैन माइल
हादी हूँ मैं काम है हिदायत मेरा
शाद अज़ीमाबादी
गूँगे अल्फ़ाज़ को नवा देता है
नावक हमज़ापुरी
गुम-कर्दा-ए-मंज़िल हुई आवाज़-ए-दरा
अलक़मा शिबली
गुलज़ार-ए-जहाँ से बाग़-ए-जन्नत में गए
मीर अनीस
गुलज़ार से क्या दश्त-ओ-दमन से गुज़रे
अलक़मा शिबली
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
मीर अनीस
गुलशन में फिरूँ कि सैर-ए-सहरा देखूँ
मीर अनीस
गुल हैं कि रुख़-ए-गर्म के हैं अंगारे
फ़िराक़ गोरखपुरी
गो उस की नहीं लुत्फ़-ओ-इनायत बाक़ी
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
गो कुछ भी वो मुँह से नहीं फ़रमाते हैं
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
गो हम भी कुछ ऐसे उन से ख़ुरसंद नहीं
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
गिरजा में गए तो पारसाई देखी
जोर्ज पेश शोर
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
जोश मलीहाबादी
ग़ुंचे को नसीम गुदगुदाए जैसे
फ़िराक़ गोरखपुरी