Rubaai Poetry (page 20)
हो आँखें तो देख मेरे ग़म की तहरीर
नावक हमज़ापुरी
हिन्दोस्तान छोड़ दो
फ़े सीन एजाज़
हिजरत तुम्हें करनी है मुहाजिर की तरह
ओबैदुर् रहमान
हरगिज़ नहीं जीने से दिल-ए-ज़ार ख़फ़ा
अख़्तर अंसारी
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़
मीर अनीस
हर ज़र्रे पे फ़ज़्ल-ए-किबरिया होता है
अमजद हैदराबादी
हर ज़ख़्म-ए-जिगर खाया है दिल पर तन कर
ग़ुलाम मौला क़लक़
हर ज़हर को तिरयाक़ समझ कर पी लो
सूफ़ी तबस्सुम
हर तरह से ज़ाएअ' है यहाँ हर औक़ात
ग़ुलाम मौला क़लक़
हर तरह की दिल में चाह कर के छोड़े
शाद अज़ीमाबादी
हर सुब्ह के चेहरे को निखारा किस ने
अलक़मा शिबली
हर शाम हुई सिंगार करना भी है
सना गोरखपुरी
हर शय ब हर अंदाज़ अलग होती है
अकबर हैदराबादी
हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा
फ़िराक़ गोरखपुरी
हर सर में ये सौदा है कि मैं ही मैं हूँ
साहिर देहल्वी
हर साँस में गुलज़ार से खिल जाते थे
फ़िराक़ गोरखपुरी
हर साँस में इक हश्र बपा है वाइ'ज़
नज़ीर बनारसी
हर रोज़ ख़ुशी है शब-ए-ग़म से पामाल
ग़ुलाम मौला क़लक़
हर रंग में उम्मीद का तारा चमका
बाक़र मेहदी
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
जोश मलीहाबादी
हर राह में है राह-नुमा नाम तिरा
तिलोकचंद महरूम
हर क़तरे में बहर-ए-मा'रफ़त मुज़्मर है
अमजद हैदराबादी
हर क़ल्ब पे बिजलियाँ गिराती आई
जगत मोहन लाल रवाँ
हर पत्ते में इक धार लिए चटकेंगे
परवेज़ शाहिदी
हर मसअले की तह में उतरना नहीं ठीक
फ़रीद परबती
हर महफ़िल से ब-हाल-ए-ख़स्ता निकला
अमजद हैदराबादी
हर लहज़ा इधर और उधर देख लिया
कालीदास गुप्ता रज़ा
हर लहज़ा धड़कता है दिल-ए-ख़ाना-ख़राब
बाक़र मेहदी
हर ख़्वाहिश-ओ-अर्ज़-ओ-इल्तिजा से तौबा
इस्माइल मेरठी
हर जल्वे से इक दर्स-ए-नुमू लेता हूँ
फ़िराक़ गोरखपुरी